NASA और ISRO – अब साथ मिलकर पृथ्वी को पहले से कहीं ज़्यादा विस्तार से देखने जा रहे हैं। यह साझेदारी न सिर्फ दोनों देशों के लिए अहम है, बल्कि हमारे ग्रह को समझने का तरीका भी बदल सकती है।
What is the NASA AND ISRO NISAR Mission?
NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) एक संयुक्त मिशन है जिसमें एक एडवांस्ड सैटेलाइट को लॉन्च किया जाएगा। यह सैटेलाइट पृथ्वी की सबसे साफ़ और डीटेल्ड इमेज देने में सक्षम होगा।
इस मिशन की योजना 2017 में शुरू हुई थी और इसका लॉन्च 2025 में भारत के श्रीहरिकोटा से किया जाएगा। यह भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों का साझा प्रयास है और यह भविष्य के अंतरिक्ष सहयोग का उदाहरण है।
Why is This Important?
इस मिशन से कई फायदें मिलेंगे:
- जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
- प्राकृतिक आपदाओं (Disasters) का बेहतर प्रबंधन किया जा सकेगा।
- पृथ्वी से जुड़ा विशाल डाटा वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को उपलब्ध होगा।
A Look Back
यह सिर्फ एक कैमरा नहीं, बल्कि पृथ्वी का ज्ञान इकट्ठा करने का एक माध्यम है।
1960 के दशक में भारत अमेरिका से मदद मांगता था, लेकिन आज भारत खुद एक शक्तिशाली टेक्नोलॉजी राष्ट्र बन चुका है। अब अमेरिका, भारत के साथ मिलकर काम करना चाहता है—विज्ञान, रक्षा और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में।

Launching from India
NISAR सैटेलाइट को भारत के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा। यह ISRO की वैश्विक भूमिका को दर्शाता है। आज UAE और अमेरिका जैसे देश भी ISRO की लॉन्च सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं।
What Makes NISAR Special?
इस मिशन में दो खास तकनीकें इस्तेमाल होंगी:
- L-band Radar (NASA): यह ज़मीन और बर्फ के नीचे तक देख सकता है। इससे भूकंप जैसे इवेंट्स की भविष्यवाणी संभव हो सकती है।
- S-band Radar (ISRO): यह सतह पर हो रही हलचल को ट्रैक कर सकता है—जैसे ग्लेशियर का पिघलना या समुद्र का बढ़ना।
यह रडार सिंथेटिक एपरचर रडार (SAR) तकनीक का उपयोग करते हैं जो पृथ्वी की बारीक से बारीक हलचल को पकड़ सकते हैं।

Understanding L-Band and S-Band: How NISAR Sees More Than the Eye
NISAR मिशन की ताकत इसके दो खास रडार सिस्टम में छिपी है—L-band और S-band। ये दोनों मिलकर पृथ्वी की सतह और सतह के नीचे तक की जानकारी दे सकते हैं।
L-Band Radar (NASA द्वारा)
- यह दीवार, पेड़, बर्फ और मिट्टी जैसी सतहों के अंदर तक पैठ सकता है।
- इससे भूकंप से पहले ज़मीन में होने वाली सूक्ष्म हरकतें पकड़ी जा सकती हैं।
- जंगलों की संरचना, बर्फीले इलाकों में बदलाव और भूगर्भीय गतिविधियों को ट्रैक करता है।
S-Band Radar (ISRO द्वारा)
- यह सतह पर हो रहे बदलावों को मापता है।
- ग्लेशियर के पिघलने, समुद्री किनारों पर कटाव और खेती योग्य जमीन की मॉनिटरिंग में उपयोगी है।
- भारत में बाढ़, सूखा और खेती से जुड़े बदलावों की सटीक जानकारी देगा।
इन दोनों रडार्स की संयुक्त क्षमता NISAR को दुनिया की सबसे उन्नत Earth Observation Satellite बनाती है।
How Will This Help?
NISAR से प्राप्त डाटा से हमें मिल सकती हैं:
- कृषि और मौसम की सटीक जानकारी
- प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी
- मानवीय गतिविधियों का प्रभाव
यह मिशन विशेष रूप से भारत जैसे कृषि-आधारित देश के लिए फायदेमंद होगा, जहां मौसम की जानकारी पर लाखों किसान निर्भर रहते हैं।
The Cost and the Partnership
इस मिशन की लागत $1.5 बिलियन (लगभग ₹12,500 करोड़) है—जो इसे अब तक की सबसे महंगी Earth Observation Satellite बनाती है।
इसमें भारत और अमेरिका की 50-50 साझेदारी है। भारत:
- लॉन्च करेगा
- डाटा को मॉनिटर करेगा
- और डाटा को पूरी दुनिया के साथ साझा करेगा
हर दिन 80 टेराबाइट्स डाटा जुटाया जाएगा—यानि हर दिन 16,000 HD फिल्मों जितना डाटा!
Key Features
- 12 मीटर की गोल्ड मेश रडार ऐंटीना
- Dual-band SAR सिस्टम (L-band और S-band)
- 747 किलोमीटर की ऊँचाई से पृथ्वी की निगरानी
- हर 12 दिन में एक बार पृथ्वी का पूरा स्कैन
Benefits for India
भारत को इससे मिलेगा:
- मौसम पूर्वानुमान में सुधार
- बाढ़, भूकंप और अन्य आपदाओं की समय पर जानकारी
- खेती, जल प्रबंधन और शहरी नियोजन में मदद
निष्कर्ष(Conclusion)
NISAR सिर्फ एक सैटेलाइट मिशन नहीं, बल्कि भारत और अमेरिका की साझेदारी का प्रतीक है। यह हमारे भविष्य के लिए वैज्ञानिक सोच और तकनीक का मिलाजुला प्रयास है।
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